प्रमुख सिविल सेवाओं का परिचय:आई.ए.एस.,आई.पी.एस.,आई.एफ.एस.

 प्रमुख सिविल सेवाओं का परिचय:

1.आई.ए.एस.
2.आई.पी.एस.
3.आई.एफ.एस. 

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस)
ब्रिटिश काल में भारतीय प्रशासनिक सेवाओं को आई.सी.एस. (Indian Civil Service- ICS) के नाम से जाना जाता था। ध्यातव्य है कि अखिल भारतीय सेवाओं में आईएएस सर्वाधिक लोकप्रिय सेवा है, यही वजह है कि सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने वाले अधिकांश अभ्यर्थियों की पहली पसंद भारतीय प्रशासनिक सेवा ही होती है। 

चयन प्रक्रिया :


  • हर साल संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली ‘सिविल सेवा परीक्षा’ के माध्यम से अखिल भारतीय सेवाओं और विभिन्न केंद्रीय सिविल सेवाओं के लिये योग्य उम्मीदवारों का चयन किया जाता है। 
  • सिविल सेवा परीक्षा में अंतिम रूप से चयनित अभ्यर्थियों को उनके प्राप्तांकों और मुख्य परीक्षा के फॉर्म में उनके द्वारा निर्धारित सेवाओं के वरीयता क्रम के आधार पर ही किसी सेवा के लिये चयनित किया जाता है।
  • आईएएस की सामाजिक प्रतिष्ठा को देखते हुए ही देश के लाखों युवाओं के बीच इसके प्रति ज़बरदस्त आकर्षण है। हर साल देश भर से लाखों युवा सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होते हैं लेकिन उनमें से कुछ-सौ या हज़ार युवा ही इसमें सफल होते हैं। 
  • हर साल इस परीक्षा में सफल होने वाले उम्मीदवारों में से लगभग 100 को ही ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ में जाने का अवसर मिलता है। ज़ाहिर है कि एक तरफ जहाँ इसके प्रति अत्यधिक क्रेज़ है, तो वहीं इसमें सफलता पाने के लिये कठिन मेहनत भी करनी पड़ती है। 
  • आईएएस बनने के लिये सिर्फ सिविल सेवा परीक्षा पास करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि इसके लिये ऊँची रैंक प्राप्त करना भी आवश्यक है। दरअसल, इस सेवा में कार्य करने और आगे बढ़ने के इतने अवसर होते हैं कि हर कोई इसके प्रति आकर्षित होता है। डॉक्टर, इंजीनियर तथा आई.आई.एम. से पढ़े हुए उम्मीदवार भी आईएएस बनने का सपना संजोए इस परीक्षा में अपनी किस्मत आज़माते हैं और सफल भी होते हैं|

शैक्षिक योग्यता:


  • सिविल सेवा परीक्षा में भाग लेने के लिये उम्मीदवार को किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय/ संस्थान से स्नातक (Graduation) होना अनिवार्य है|
प्रशिक्षण :
भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारियों का प्रशिक्षण ब्रिटिशकाल से लेकर अब तक आवश्यकतानुसार परिवर्तित होता रहा है। वर्तमान में इस सेवा के अधिकारियों का प्रशिक्षण निम्नलिखित चरणों में पूरा होता है-
1. आधारभूत प्रशिक्षण - 16 सप्ताह (मसूरी, उत्तराखंड ) 
2. व्यावसायिक प्रशिक्षण (चरण-I) - 26 सप्ताह (मसूरी)
3. राज्य स्तर पर प्रशिक्षण (ज़िला प्रशिक्षण) - 52 सप्ताह  
    संस्थागत प्रशिक्षण (चरण- I) - 3 सप्ताह
    विभिन्न कार्यालयों में व्यावहारिक प्रशिक्षण (ज़िला प्रशिक्षण) - 45 सप्ताह
    संस्थागत प्रशिक्षण (चरण- II) - 4 सप्ताह
4. व्यावसायिक प्रशिक्षण (चरण- II) - 9 सप्ताह

आधारभूत प्रशिक्षण :


  • सिविल सेवा परीक्षा में चयनित उम्मीदवारों जिनमें भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय विदेश सेवा तथा केन्द्रीय सेवा वर्ग ‘अ’ के भावी अधिकारी सम्मिलित हैं, को एक-साथ ‘लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी (उत्तराखंड)’ में 16 सप्ताह का आधारभूत प्रशिक्षण दिया जाता है। 
  • यहाँ इन सेवाओं के प्रशिक्षु अधिकारी एक साथ प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। इससे इन प्रशिक्षु अधिकारियों में आपसी सामंजस्य तथा एकता का भाव पैदा होता है। 
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम कई चरणों में संपादित होता है जो कठिन प्रकृति का होने के साथ-साथ रुचिकर भी होता है। 
  • आधारभूत प्रशिक्षण (Foundational Course) में प्रशिक्षु अधिकारियों को भारत का सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, भारत का संविधान एवं प्रशासन, राजनीतिक सिद्धांत, लोक प्रशासन, विधि, आधारभूत अर्थशास्त्र एवं जनसंख्या अध्ययन और हिन्दी भाषा का अध्ययन करवाया जाता है। यह प्रशिक्षण मूलतः ज्ञान आधारित होता है। 
  • इस प्रशिक्षण का मूल उद्देश्य प्रशिक्षु अधिकारियों में अपेक्षित कौशल, ज्ञान तथा अभिवृत्ति का विकास करना तथा भारतीय परिवेश एवं मूल्यों को जानने के लिये अन्य सेवाओं के साथ समन्वय का भाव सिखाना होता है ताकि ये आने वाली बड़ी ज़िम्मेदारियों को निभाने के लिये प्रशिक्षित हो सकें। 
  • आधारभूत प्रशिक्षण के पश्चात् आईएएस संवर्ग के प्रशिक्षु अधिकारी अकादमी में ही रहते हैं, जबकि अन्य सेवाओं के प्रशिक्षु अधिकारी अपने-अपने प्रशिक्षण संस्थानों में चले जाते हैं।

व्यावसायिक प्रशिक्षण (चरण -I) : 


  • आधारभूत प्रशिक्षण के बाद 26 सप्ताह का आईएएस व्यावसायिक प्रशिक्षण (चरण -I) शुरू होता है।
  • प्रशिक्षण का यह भाग कौशल उन्मुख होता है। इसमें इन्हें आवश्यक अकादमिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक व ज़मीनी सच्चाई से भी रूबरू कराया जाता है। 
  • इस प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षु अधिकारियों को विभिन्न दलों में बाँटकर दो सप्ताह के लिये भारत भ्रमण कराया जाता है ताकि ये देश की सांस्कृतिक विविधता से परिचित हो सकें और देश के प्रति इनकी समझ अधिक परिपक्व हो सके। 
  • इस दौरान इन्हें देश की संसदीय व्यवस्था का व्यावहारिक अनुभव भी कराया जाता है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री जैसे गणमान्य व्यक्तियों से मिलने का अवसर भी इसी चरण का हिस्सा है।

राज्य स्तर पर प्रशिक्षण (ज़िला प्रशिक्षण) :


  • मसूरी में आधारभूत तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण (चरण-I) पूरा करने के पश्चात् इन प्रशिक्षु अधिकारियों को इन्हें आवंटित राज्य में भेज दिया जाता है।    
  • इसके पश्चात् 52 सप्ताह यानी एक वर्ष का ‘ज़िला स्तरीय प्रशिक्षण’ शुरू होता है, जिसमें प्रशिक्षुओं को आवंटित राज्य के किसी एक ज़िले में जाकर कार्य करना होता है।
  • इस प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षुओं को राज्य प्रशासनिक अकादमी में 3 सप्ताह का संस्थागत प्रशिक्षण (चरण- I) दिया जाता है। 
  • यहाँ प्रशिक्षुओं को राज्य के प्रशासनिक तंत्र की महत्त्वपूर्ण बातें समझाई जाती हैं। इस संस्थागत प्रशिक्षण के पश्चात् प्रशिक्षु अधिकारियों, जिन्हें ‘प्रोबेशनर’ (Probationer) कहा जाता है, को वास्तविक प्रशासनिक अनुभव हासिल कराने के लिये विभिन्न कार्यालयों में संलग्न किया जाता है। इसे ज़िला प्रशिक्षण कहते हैं। 
  • इस दौरान इन्हें सामान्य कानून एवं नियम, कार्मिक प्रशासन, वित्तीय प्रशासन, राजस्व प्रशासन, भू-सुधार, नियोजन एवं विकास का सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक अनुभव कराया जाता है। 
  • प्रशिक्षण प्राप्त करते समय प्रशिक्षु अधिकारियों को व्यावहारिक स्तर पर आने वाली समस्याओं तथा शंकाओं का समाधान ज़िलाधीशों के मार्गदर्शन में होता है। 
  • इस चरण का मुख्य उद्देश्य यह है कि प्रशिक्षु अधिकारी प्रशासनिक ढाँचे को समझें तथा वहाँ के लोगों, उनके प्रतिनिधियों तथा वरिष्ठ अधिकारियों से संवाद कर विकास के अवसरों और नीतियों के क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियों को समझ सकें।
  • राज्य स्तर पर प्रशिक्षण के अन्तिम चरण में पुनः राज्य प्रशासन अकादमी में 4 सप्ताह का संस्थागत प्रशिक्षण (चरण-II) दिया जाता है।
  • इस दौरान सभी प्रशिक्षु अपने राज्य प्रशिक्षण की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करते हैं।

व्यावसायिक प्रशिक्षण (चरण- II) : 


  • राज्य में प्रशिक्षण समाप्त करके सभी आईएएस प्रशिक्षणार्थी पुनः मसूरी लौट आते हैं। फिर यहाँ आईएएस व्यावसायिक प्रशिक्षण चरण-II शुरू होता है जो 6 सप्ताह का होता है। 
  • इस चरण में प्रशिक्षु क्षेत्र अध्ययन (Field work) के दौरान अर्जित व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर प्रशासन की अच्छाइयों और बुराइयों से सभी को अवगत कराते हैं।  
  • इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य आईएएस अधिकारी के रूप में प्रशिक्षणार्थियों को शारीरिक-मानसिक रूप से तैयार करना, उनमें विश्लेषण, लेखन तथा संचार क्षमता विकसित करना, प्राप्त ज्ञान को अद्यतन करना, कम्प्यूटर शिक्षा देना, राजभाषा में योग्य बनाना तथा आत्मविश्वास से युक्त श्रेष्ठ अधिकारी बनाना है। 
  • अंत में, प्रशिक्षु अधिकारियों की एक लिखित परीक्षा भी होती है जो अकादमी द्वारा आयोजित की जाती है। इसका संचालन यूपीएससी करता है।  
  • इस परीक्षा में सफलता प्राप्त करने तथा एक वर्ष या 18 माह (प्रत्येक राज्य का वास्तविक काल भिन्न होता है) की सेवा पूर्ण कर लेने के पश्चात् ही सेवा में उनकी स्थायी नियुक्ति की जाती है।
  • इस प्रकार, औपचारिक आरंभिक प्रशिक्षण समाप्त हो जाता है तथा प्रत्येक अधिकारी को उसके निर्धारित कैडर में भेज दिया जाता है। हालाँकि, यह आरंभिक प्रशिक्षण ही होता है, इसके बाद ‘मिड कॅरियर ट्रेनिंग प्रोग्राम’ के तहत सेवाकाल के बीच में भी कई बार प्रशिक्षण दिया जाता है। 

नियुक्ति : 


  • नियुक्ति के पहले वर्ष में प्रशिक्षण का एक नियमित कार्यक्रम होता है। इसके पश्चात् उन्हें एक अनुभाग (Sub-division) सौंप दिया जाता है। उनके अनुभव एवं ज्ञान को समृद्ध करने के लिये प्रति दो वर्ष कार्य कर लेने के पश्चात् उनका स्थानांतरण एक ज़िले से दूसरे ज़िले में किया जाता है।
  • इसके अलावा, अवर सचिव (Under Secretary) के रूप में उन्हें लगभग 18 माह के लिये सचिवालय भेजा जाता है। इसके पश्चात् ही उन्हें ज़िलाधीश (District Magistrate) बनाया जाता है।   
  • शुरुआती स्तर पर एक आईएएस अधिकारी को सब डिविज़नल ऑफिसर (SDO), सब डिविज़नल मजिस्ट्रेट (SDM), चीफ़ डेवलेपमेंट ऑफिसर (CDO) जैसे पदों पर नियुक्त किया जाता है। फिर इन्हें डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट अथवा ज़िलाधिकारी (DM), डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर, डिप्टी कमिश्नर (DC) या डिविज़नल कमिश्नर के पद पर नियुक्त किया जाता है।
  • ये सभी वैसे पद हैं जो फील्ड पोस्टिंग के समय आईएएस अधिकारी ग्रहण करते हैं। इसके अतिरिक्त, इनकी नियुक्ति किसी स्वायत्त संगठन, पीएसयू, वर्ल्ड बैंक, एशियाई डेवलपमेंट बैंक जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भी की जा सकती है। 
  • ये केन्द्रीय मंत्री के निजी सचिव के रूप में भी कार्य करते हैं। 

पदोन्नति: 


  • लोक सेवा में पदोन्नति वरिष्ठता और/या योग्यता के आधार पर होती है।
  • समय के साथ प्रदर्शन के आधार पर इनकी प्रोन्नति होती है।
  • प्रोन्नति के बाद ये केंद्र सरकार और राज्य सरकार के अंतर्गत कई पदों पर कार्य करते हैं। ये क्रमशः निम्नलिखित पदों का दायित्व संभालते हैं-
    अवर सचिव
    • भारत सरकार के अधीन उप-सचिव 
    • भारत सरकार के अधीन निदेशक
    • भारत सरकार के अधीन संयुक्त सचिव / राज्य सरकार के अधीन सचिव 
    • भारत सरकार में अतिरिक्त सचिव / राज्य सरकार में मुख्य सचिव 
    • भारत सरकार में सचिव / प्रधान सचिव 
    • कैबिनेट सेक्रेटरी 
  • कैबिनेट सेक्रेटरी बनना हर आईएएस अधिकारी का सपना होता है, लेकिन यह सौभाग्य बहुत ही कम अधिकारियों को अपने सेवा काल के अंतिम वर्षों में मिल पाता है। 
  • आईएएस अधिकारी के रूप में इनकी सर्वश्रेष्ठ पदस्थापना प्रधानमंत्री तथा विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों के प्रधान सचिव के रूप में होती है|

सेवाकालीन प्रशिक्षण :


  • अकादमिक प्रशिक्षण के पश्चात् इन अधिकारियों को जो प्रशिक्षण दिया जाता है, उसे ये कार्य करते हुए प्राप्त करते हैं। 
  • आईएएस अधिकारियों को सेवा में रहते हुए 6-9 वर्ष, 10-16 वर्ष तथा 17-20 वर्ष की अवधि पर  सेवाकालीन प्रशिक्षण दिया जाता है। यह प्रशिक्षण प्रायः अल्पावधिक होता है  
  • इसी प्रकार, राज्य सेवाओं से आईएएस में पदोन्नत होने वाले अधिकारी भी मसूरी में 5 सप्ताह का आगमन प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। 
  • भारतीय लोक प्रशासन संस्थान भी 38 सप्ताह का एम.फिल. स्तरीय ‘एडवांस्ड प्रोफेशन प्रोग्राम इन  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन’ (APPPA) प्रदान करता है। 

कार्य :


  • आईएएस अधिकारी विभिन्न देशों और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं| ये सरकार के प्रतिनिधि के रूप में विभिन्न संधियों एवं समझौतों पर हस्ताक्षर करने के लिये अधिकृत (Authorized) होते हैं|
  • जब ये ज़िला स्तर पर कार्य करते हैं तो इन्हें ज़िलाधिकारी, कलेक्टर आदि नामों से जाना जाता है| 
  • ये ज़िला स्तर के सभी कार्यों के लिये सीधे तौर पर उत्तरदायी होते हैं, चाहे वह विकास कार्य हो या कानून व्यवस्था या फिर आपदा प्रबंधन|
  • इन पर कानून व्यवस्था को बनाए रखने का उत्तरदायित्व तो होता ही है, साथ ही सामान्य और राजस्व प्रशासन में भी इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। 
  • एक आईएएस अधिकारी पर नीतियों के सफल क्रियान्वयन का दारोमदार तो होता ही है, साथ ही नीति निर्माण में भी इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। 
  • समय के साथ इन्हें अलग-अलग विभागों में भी कार्य करना होता है जो अपनी प्रकृति में बिल्कुल भिन्न होते हैं।  
  • कार्य प्रकृति की यह विविधता जहाँ चुनौतियों से भरी होती है, वहीं इसमें अलग-अलग अनुभवों से गुज़रने का सुख भी मिलता है।
  • ज़िला मजिस्ट्रेट या कलेक्टर ज़िले का मुख्य कार्यकारी, प्रशासनिक और राजस्व अधिकारी होता है। वह ज़िले में कार्य कर रही विभिन्न सरकरी एजेंसियों के मध्य आवश्यक समन्वय की स्थापना करता है|
  • ज़िला मजिस्ट्रेट या कलेक्टर के कार्य एवं दायित्वों को कलेक्टर, ज़िला मजिस्ट्रेट, डिप्टी कमिश्नर, मुख्य प्रोटोकॉल अधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी और निर्वाचन अधिकारी के कार्यों और दायित्वों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है|
  • सचिवालयों में ये उप सचिव, अवर सचिव, मुख्य सचिव, प्रधान सचिव इत्यादि के दायित्व निभाते हैं|

भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस)

भारतीय पुलिस सेवा (Indian Police Service- IPS) जिसे आम बोलचाल में ‘आईपीएस’ के नाम से जाना जाता है, एक अखिल भारतीय सेवा है। ब्रिटिश शासन के दौरान इसे ‘इंपीरियल पुलिस’ के नाम से जाना जाता था।

चयन प्रक्रिया: 


  • भारतीय पुलिस सेवा में अधिकारियों का चयन प्रत्येक वर्ष संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा आयोजित ‘सिविल सेवा परीक्षा’ के माध्यम से होता है। 
  • इस परीक्षा में अंतिम रूप से चयनित अभ्यर्थियों को उनके कुल अंकों और उनके द्वारा दी गई ‘सेवा वरीयता-सूची’ के आधार पर सेवा का आवंटन किया जाता है। 
  • चूँकि, इस सेवा के साथ अनेक चुनौतियाँ और उत्तरदायित्व जुड़े होते हैं, इसलिये संघ लोक सेवा आयोग इस सेवा हेतु ऐसे अभ्यर्थियों का चुनाव करता है जो इसके अधिकतम अनुकूल हों। 
  • इस सेवा से जुड़ी सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते देश के लाखों युवाओं में इसके प्रति ज़बरदस्त आकर्षण है। हर साल देश के लाखों युवा सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होते हैं।

शैक्षिक योग्यता:


  • सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होने के लिये उम्मीदवार को किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय/ संस्थान से स्नातक (Graduate) होना अनिवार्य है|

शारीरिक योग्‍यता:


  • लंबाई:
     आईपीएस में चयनित होने के लिये पुरुष उम्मीदवारों की लंबाई कम से कम 165 सेंटीमीटर तथा महिला उम्मीदवारों की लंबाई कम-से-कम 150 सेंटीमीटर होनी चाहिये|
  • अनुसूचित जनजाति (STs) वर्ग के पुरुष उम्मीदवारों की लंबाई कम से कम 160 सेंटीमीटर तथा महिला उम्मीदवारों की लंबाई कम-से-कम 145 सेंटीमीटर होनी आवश्यक है|
  • चेस्‍ट: पुरुष एवं महिला उम्मीदवारों की चेस्ट क्रमशः कम-से-कम 84 एवं 79 सेंटीमीटर होनी चाहिये|
  • आई साइट: स्‍वस्‍थ आँखों का विज़न 6/6 या 6/9 होना चाहिये, जबकि कमज़ोर आँखों का विज़न 6/2 या 6/9 होना चाहिये|  
प्रशिक्षण:
भारतीय पुलिस सेवा प्रशिक्षण की निम्नलिखित अवस्थाएँ होती हैं- 
1. आधारभूत प्रशिक्षण - 4 माह ( राष्ट्रीय अकादमी, मसूरी में)
2. संस्थागत/ व्यावसायिक प्रशिक्षण (चरण- I) - 12 माह (पुलिस अकादमी, हैदराबाद में)
3. व्यावहारिक प्रशिक्षण - 8 माह (आवंटित राज्य के किसी ज़िले में)
4. संस्थागत/ व्यावसायिक प्रशिक्षण (चरण- II) - 3 माह (पुलिस अकादमी, हैदराबाद में)
  • ‘लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी (उत्तराखंड)’ में 16 सप्ताह का आधारभूत प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात् भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में चयनित उम्मीदवारों को ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद’ में प्रशिक्षण दिया जाता है जो एक वर्ष का होता है। 
  • यहाँ इन प्रशिक्षु अधिकारियों को सर्वप्रथम संस्थागत प्रशिक्षण चरण-I में 4 सप्ताह तक भारतीय दण्ड संहिता, अपराध शास्त्र, भारतीय साक्ष्य अधिनियम तथा भारतीय संवैधानिक व्यवस्था की सूक्ष्म जानकारी दी जाती है। 
  • यहाँ इन अधिकारियों को शारीरिक व्यायाम, ड्रिल तथा हथियार चलाने पर विशेष ध्यान देने को कहा जाता है। 
  • विभिन्न प्रकार के हथियारों का प्रशिक्षण दिलाने के लिये इन अधिकारियों को सीमा सुरक्षा बल के इंदौर (मध्य प्रदेश) स्थित ‘सेण्ट्रल स्कूल फॉर वेपंस एण्ड टैक्टिक्स’ में 28 दिन रखा जाता है, जहाँ इन्हें विभिन्न छोटे-बड़े हथियारों को  खोलना, साफ करना तथा पुनः जोड़ना सिखाया जाता है।
  • इसके अतिरिक्त टैक्टिक्स (व्यूह रचना) के अंतर्गत नक्शा पढ़ना, दबिश देना, रात्रि विचरण, खोज तथा घात लगाना इत्यादि सिखाया जाता है। 
  • इसके साथ-साथ इन प्रशिक्षु अधिकारियों को घुड़सवारी, उग्र भीड़ नियंत्रण, अग्निशमन, जनता से मित्रवत व्यवहार, तैराकी, फोटोग्राफी, पर्वतारोहण, वाहन चलाना, आतंकवाद नियंत्रण, महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा, बेतार संचार प्रणाली तथा साम्प्रदायिक दंगों से संबंधित आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। 
  • संस्थागत प्रशिक्षण चरण-I के पश्चात् प्रशिक्षु अधिकारियों को एक वर्ष के लिये पुलिस अधीक्षक, उपाधीक्षक, वृत्त निरीक्षक तथा थानाधिकारी के साथ नियुक्त किया जाता है। यहाँ प्रशिक्षु अधिकारी विभिन्न प्रकार के आपराधिक मामलों की जाँच तथा कार्यालयी प्रक्रियाओं व थानों की कार्यप्रणाली की व्यावहारिक जानकारी हासिल करते हैं|
  • व्यावहारिक प्रशिक्षण के पश्चात् पुनः अकादमी में इनका संस्थागत प्रशिक्षण चरण-II शुरू होता है। एक वर्ष का प्रशिक्षण पूरा करने के उपरान्त परिवीक्षाधीन अधिकारियों को यूपीएससी द्वारा संचालित एक परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती है तत्पश्चात् इन्हें व्यावहारिक प्रशिक्षण से सम्बन्धित (आवंटित) राज्य में ‘सहायक पुलिस अधीक्षक’ के पद पर नियुक्त कर दिया जाता है। 
  • इस प्रकार आरंभिक औपचारिक प्रशिक्षण समाप्त हो जाता है तथा प्रत्येक अधिकारी को उसके निर्धारित कैडर में भेज दिया जाता है। हालाँकि,यह प्रारंभिक प्रशिक्षण ही होता है, इसके बाद ‘मिड कॅरियर ट्रेनिंग प्रोग्राम’ के तहत सेवाकाल के बीच में भी कई बार प्रशिक्षण दिया जाता है।  

नियुक्ति: 


  • प्रशिक्षण पूरा होने के बाद प्रशिक्षु अधिकारी को जो राज्य कैडर दिया जाता है, उसी राज्य के किसी एक ज़िले के पुलिस अधीक्षक के कार्यालय में प्रशिक्षु अधिकारी को एक साल का कार्य-प्रशिक्षण लेना होता है। इसके बाद इन्हें सहायक पुलिस अधीक्षक के रूप में दो वर्ष तक कार्य करना होता है।
  • सहायक पुलिस अधीक्षक के रूप में कार्य करते हुए, अधिकारी का उत्तरदायित्व पुलिस उपाधीक्षक के समकक्ष होता है। 

पदोन्नति:


  • पदोन्नति के द्वारा आईपीएस अधिकारी सहायक पुलिस अधीक्षक के पद से पुलिस महानिदेशक तक पहुँच सकता है। पुलिस महानिदेशक राज्य पुलिस बल का मुखिया होता है। 
  • इसके अतिरिक्त आईपीएस अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर भारत सरकार के ख़ुफ़िया विभाग इंटेलिजेन्स ब्यूरो (आईबी)और सीबीआई में भी नियुक्त किया जाता हैं। 
  • दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में कानून और व्यवस्था को बनाए रखना पुलिस बल की विशेष ज़िम्मेदारी है। इन शहरों में पुलिस अधिकारी को सहायक पुलिस आयुक्त(ACP),अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त(ADCP),पुलिस उपायुक्त (DCP), संयुक्त पुलिस आयुक्त और पुलिस आयुक्त (CP) कहा जाता है। पुलिस आयुक्त(CP) इन शहरों के पुलिस बल का प्रमुख होता है।
  • आईपीएस अधिकारी के रूप में इनकी सर्वश्रेष्ठ पदस्थापना सीबीआई, आईबी इत्यादि केंद्रीय पुलिस संगठनों के प्रमुख तथा विभिन्न राज्यों के पुलिस महानिरीक्षक के रूप में होती है|

सेवाकालीन प्रशिक्षण:


  • सेवा में रहते हुए उच्च पदों को धारण करने की क्षमता तथा परिवर्तित परिस्थितियों से सामंजस्य बैठाने के लिये भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारिओं को सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान तथा अन्य संस्थाओं द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है। 
  • सेवाकालीन प्रशिक्षण में मुख्यतः प्रशासनिक प्रक्रिया, जन सम्पर्क, दंगा नियंत्रण, मानवाधिकार, उग्र आंदोलन, प्राकृतिक आपदाएँ, दुर्घटनाएँ तथा प्रेस से संबंध इत्यादि विषय सम्मिलित होते हैं।

कार्य:


  • सहायक पुलिस अधीक्षक(ASP) के रूप में कार्य करते हुए इनकी जवाबदेहिता अपने वरिष्ठ अधिकारी- पुलिस अधीक्षक(SP), वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक(SSP), उप पुलिस महानिरीक्षक(DIG) के प्रति होती है।
  • आईपीएस की पदस्थापना पुलिस अधीक्षक (SP) के रूप में होती है जो सार्वजनिक सुरक्षा, कानून व्यवस्था, अपराध नियंत्रण एवं निवारण, ट्रैफिक नियंत्रण इत्यादि के लिये ज़िम्मेदार होता है|
  • ये अन्य केंद्रीय पुलिस संगठनों जैसे- सीबीआई, बीएसएफ, सीआरपीएफ इत्यादि में भी अपनी सेवाएँ देते हैं|
  • दिन-प्रतिदिन के कार्यों में इन्हें सामान्यत: लोक शांति और व्यवस्था, अपराध की रोकथाम, जाँच और पहचान, वीआईपी सुरक्षा, तस्करी, मादक पदार्थों की तस्करी, आर्थिक अपराध, भ्रष्टाचार के मामले, सार्वजनिक जीवन, आपदा प्रबंधन, सामाजिक-आर्थिक कानून, जैव विविधता और पर्यावरण कानूनों आदि के संरक्षण आदि पर विशेष ध्यान देना होता है|
  • आईपीएस अधिकारी पुलिस बलों में मूल्यों और मानदंडों को विकसित करने का कार्य भी करता है |
  • तेज़ी से बदलते सामाजिक और आर्थिक परिवेश में लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप कानून और न्याय,  अखंडता, संवेदनशीलता, मानवाधिकार इत्यादि  की रक्षा करना और जनता में पुलिस के प्रति विश्वास बढ़ाने में आईपीएस अधिकारी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| 
  • भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस)
    भारतीय विदेश मंत्रालय के कार्यों के संचालन के लिये एक विशेष सेवा वर्ग का निर्माण किया गया है जिसे भारतीय विदेश सेवा  (Indian Foreign Service- IFS) कहते हैं। यह भारत के पेशेवर राजनयिकों का एक निकाय है। यह सेवा भारत सरकार की केंद्रीय सेवाओं का हिस्सा है। भारत के विदेश सचिव, भारतीय विदेश सेवा के प्रशासनिक प्रमुख होते हैं। यह सेवा अब संभ्रान्त परिवारों, राजा-रजवाड़ों, सैनिक अफसरों आदि तक ही सीमित न रहकर सभी के लिये खुल गई है। सामान्य नागरिक भी अपनी योग्यता और शिक्षा के आधार पर इस सेवा का हिस्सा बन सकता है।
    चयन प्रक्रिया:

    • भारतीय विदेश सेवा में चयन प्रत्येक वर्ष संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा आयोजित ‘सिविल सेवा परीक्षा’ के द्वारा होता है।
    • सिविल सेवा परीक्षा में अंतिम रूप से चयनित अभ्यर्थियों को उनके द्वारा प्राप्त कुल अंकों और उनके द्वारा दी गई सेवा वरीयता के अनुसार ही पदों का आवंटन किया जाता है।
    • इस सेवा के साथ अनेक चुनौतियाँ और उत्तरदायित्व जुड़े हुए हैं, इसलिये संघ लोक सेवा आयोग इस सेवा के लिये ऐसे अभ्यर्थियों  का ही चुनाव करता है जो इस सेवा के अनुकूल हों।
    • हाल के वर्षों में भारतीय विदेश सेवा में प्रति वर्ष लगभग 20 व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता है। सेवा की वर्तमान कैडर संख्या लगभग 600 अधिकारियों की है,जिनमें लगभग 162 अधिकारी विदेशों में भारतीय मिशन एवं देश में विदेशी मामलों के मंत्रालय में विभिन्न पदों पर आसीन हैं।

    शैक्षिक योग्यता:

    • उम्मीदवार को किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय/ संस्थान से स्नातक (Graduate) होना अनिवार्य है|

    प्रशिक्षण:
    भारतीय विदेश सेवा के लिये चयनित नए सदस्यों को तीन वर्षीय (36 महीनों की अवधि) महत्त्वपूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम से होकर गुज़रना पड़ता है। यह प्रशिक्षण निम्नलिखित चरणों में संपन्न होता है-
    1. आधारभूत प्रशिक्षण - 4 माह (राष्ट्रीय अकादमी, मसूरी में)
    2. व्यावसायिक प्रशिक्षण - 12 माह (ज़िला कार्यालय और अन्तर्राष्ट्रीय स्कूल, नई दिल्ली में) 
    3. व्यावहारिक प्रशिक्षण - 6 माह (विदेश मन्त्रालय के अंतर्गत)
    4. परिवीक्षा प्रशिक्षण - 14 माह (विदेश स्थित उच्चायुक्त/दूतावास में)

    • सर्वप्रथम इन प्रशिक्षु अधिकारियों को ‘लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी’ में 4 माह का आधारभूत प्रशिक्षण दिया जाता है, जहाँ कई अन्य विशिष्ट भारतीय सिविल सेवा संगठनों के सदस्यों को भी प्रशिक्षित किया जाता है।
    • नए सदस्य एक परिवीक्षा अवधि से गुज़रते हैं, इस दौरान इन्हें परिवीक्षार्थी (प्रोबेशनर) कहा जाता है।
    • लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद परिवीक्षार्थी आगे के प्रशिक्षण के साथ-साथ विभिन्न सरकारी निकायों के साथ संलग्न होने और भारत एवं विदेश में भ्रमण के लिये नई दिल्ली स्थित ‘विदेश सेवा संस्थान’ में दाखिला लेते हैं। 
    • इन प्रशिक्षु अधिकारियों को ‘इंडियन स्कूल ऑफ इण्टरनेशनल स्टडीज़, नई दिल्ली’ में 4 माह का विदेश नीति तथा कार्य-प्रणाली, अन्तर्राष्ट्रीय संबंध तथा भाषा की जानकारी का प्रशिक्षण दिया जाता है।
    • इसके पश्चात् प्रशिक्षु अधिकारियों को 6 माह के लिये किसी ज़िला प्रशासन से संलग्न किया जाता है ताकि ये दायित्व के व्यावहारिक सम्पर्क में आने के योग्य हो जाएँ। साथ ही, इन्हें कुछ समय के लिये विदेश मन्त्रालय के सचिवालय में भी प्रशिक्षण प्रदान किया जाता हैं।
    • आईएफएस के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाषाओं (हिन्दी तथा एक विदेशी भाषा) और ऐसे विषयों के अध्ययन पर बल दिया जाता है जिनका ज्ञान प्राप्त करना एक आईएफएस अधिकारी के लिये आवश्यक समझा जाता है। 
    • नए सदस्यों को कुछ दिनों के लिये सेना की यूनिट में तथा ‘भारत दर्शन’ के लिये भी भेजा जाता है।
    • प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन पर अधिकारी को अनिवार्य रूप से एक विदेशी भाषा (Context Free Language - CFL) सीखने का जिम्मा दिया जाता है। 
    • एक संक्षिप्त अवधि तक विदेश मंत्रालय के साथ संलग्न रहने के बाद अधिकारी को विदेश में एक भारतीय राजनयिक मिशन पर नियुक्त किया जाता है जहाँ की स्थानीय भाषा ‘सीएफएल’ हो। वहाँ  अधिकारी भाषा का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं और फिर इनसे सीएफएल में दक्षता प्राप्त करने और एक परीक्षा उत्तीर्ण करने की अपेक्षा की जाती है, उसके बाद ही इन्हें सेवा में बने रहने की अनुमति दी जाती है।

    नियुक्ति एवं पदोन्नति: 

    • आईएफएस अधिकरियों की नियुक्ति सामान्यत: दूतावास, वाणिज्य दूतावास एवं विदेश मंत्रालय में की जाती है।
    • ये विदेशों में अपनी सेवा तृतीय सचिव के तौर पर आरंभ करते हैं और सेवा में स्थायी होते ही द्वितीय सचिव के पद पर प्रोन्नत कर दिये जाते हैं। 
    • आईएफएस अधिकारी की सर्वश्रेष्ठ पदस्थापना राजदूत या विदेश सचिव के रूप में होती है|  इनका पदक्रम इस प्रकार है-
दूतावास में:
तृतीय सचिव (प्रवेश स्तर)
द्वितीय सचिव (सेवा में पुष्टि के बाद पदोन्नति)
प्रथम सचिव
सलाहकार
मिशन के उपाध्यक्ष/ उप उच्चायुक्त/ उप स्थायी प्रतिनिधि
राजदूत/उच्चायुक्त/स्थायी प्रतिनिधि
    वाणिज्य दूतावास में: 
    उप वाणिज्य दूत(Vice Consul)
    वाणिज्य दूत(Consul)
    महावाणिज्य दूत(Consul-General)
      विदेश मंत्रालय में:
      अवर सचिव(Upper Secretary)
      उप सचिव(Deputy Secretary)
      निदेशक(Director)
      संयुक्त सचिव(Joint Secretary)
      अतिरिक्त सचिव(Additional Secretary)
      सचिव(Secretary)

      कार्य: 

      वृत्तिक (Professional) राजनयिक के तौर पर आईएफएस अधिकारी से यह आशा की जाती है कि वह विभिन्न मुद्दों पर देश और विदेश दोनों में भारत के हितों का ध्यान रखेगा और इसे आगे बढ़ाएगा। इनमें द्विपक्षीय राजनीतिक और आर्थिक सहयोग, व्यापार और निवेश संवर्द्धन, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, प्रेस और मीडिया संपर्क तथा सभी बहुपक्षीय मुद्दे शामिल हैं। 
      आईएफएस अधिकारी मुख्यत: देश के बाह्य मामलों जैसे- कूटनीति, व्यापार, सांस्कृतिक संबंधों, प्रवास संबंधित मामलों आदि से संबंधित कार्यों को संपादित करते हैं|
      ये भारत की विदेश नीति के निर्माण तथा क्रियान्वयन में संलग्न रहते हैं|
      ये अपने दूतावासों, उच्चायोगों और संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय संगठनों के स्थायी मिशनों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं|
      नियुक्त किये जाने वाले देश में भारत के राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करना इनका मुख्य उद्देश्य होता है।
      अनिवासी भारतीयों और भारतीय मूल के व्यक्तियों सहित मेज़बान राष्ट्र और उसकी जनता के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने में इनकी मुख्य भूमिका होती है।
      ये विदेश में उन घटनाक्रमों की सही-सही जानकारी देते हैं, जो भारत के नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती हैं।
      मेज़बान राष्ट्र के प्राधिकारियों के साथ विभिन्न मुद्दों पर समझौता-वार्ता करने की ज़िम्मेदारी भी इन्हीं की होती है।
      विदेश मंत्रालय, भारत के विदेश संबंधों से जुड़े सभी पहलुओं के लिये उत्तरदायी है। क्षेत्रीय प्रभाग, द्विपक्षीय राजनीतिक और आर्थिक कार्य देखते हैं, जबकि क्रियात्मक प्रभाग,  नीति-नियोजन, बहुपक्षीय संगठनों, क्षेत्रीय दलों, विधिक मामलों, निःशस्त्रीकरण, नवाचार, भारतीय डायस्पोरा, प्रेस और प्रचार, प्रशासन तथा अन्य कार्यों को देखते हैं।
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