नगरनिगम एक बहुत ही बड़ी संस्था है, वह एक व्यक्ति नहीं है। यह सड़कों पर रोशनी की व्यवस्था, कुड्डा इकट्ठा करने, पानी की सुबिधा उपलब्ध कराने और सड़कों व बाज़ारों की सफाई का काम करती है।
इनकी स्वच्छता भी एक ज़िम्मेदारी है ताकि बीमारी न फैलें। ये स्कूल स्थापित करता है और उन्हे चलता है।
छोटे कस्बों में इसे नगरपालिका कहते हैं।
निगम पार्षद एवं प्रशासनिक कर्मचारी
ज़्यादातरनिगम पार्षदहीं निर्णय लेते हैं कि अस्पताल या पार्क कहाँ बनेगा।
शहर को अलग-अलग वार्डों में बाँटा जाता है और हर वार्ड से एक पार्षद का चुनाव होता है।
कुछ पार्षद मिलकर समितियाँ बनाते हैं जो विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श करके निर्णय लेती है।
बस स्टैंड को बेहतर या नाली कि सफाई इत्यादि।
जब एक वार्ड के अंदर की समस्या होती है तो वार्ड के लोग पार्षद से संपर्क कर सकते है। जैसे बिजली के तार लटक कर नीचे आ जाएँ तो स्थानीय पार्षद बिजली विभाग के अधिकारियों से मदद ले सकते हैं।
जहां पार्षदों की समितियाँ एवं पार्षद विभिन्न मुद्दों पर निर्णय लेने का काम करते हैं ।
वहीं उन्हें लागू करने का काम आयुक्त(कमिश्नर) और प्रशासनिक कर्मचारी करते हैं।
आयुक्त और प्रशासनिक कर्मचारी, सरकार द्वारा नियुक्त होती है जबकि पार्षद निर्वाचित होते हैं।
सभी वार्डों के पार्षद मिलते हैं और सबकी राय से एक बजट बनाया जाता है।
उसी बजट के अनुसार पैसा खर्च किया जाता है।
पार्षद यह प्रयास करते हैं कि उन्हें वार्ड की विशिष्ट जरूरतें परिषद के सामने रखी जा सके।
फिर ये निर्णय परिषद के कर्मचारियों द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।
शहर में काम को अलग-अलग विभागों में बाँट देते हैं जैसे जल-विभाग, कचरा जमा करने का विभाग, उद्यानों, सड़क-व्यवस्था का विभाग इत्यादि।
नगर निगम को पैसे कहाँ से मिलते हैं?
टैक्स से आता है जैसे घर या संपति(25-30%) का टैक्स, सिनेमा से, होटल के मालिक से इत्यादि।